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एक बार कि बात है, एक गांव में रामेश्वरी नाम कि महिला रहती थी, उसका विवाह रत्नलाल से हुआ। वो हमेशा अपने पति की आज्ञा का पालन किया करती थीं उसकी एक बेटी भी थी जिसका नाम ‘रिया’ था। एक बार जब रामेश्वरी अपने पति रत्नलाल को खाना परोस रही थी। रिया और रत्नलाल हमेशा साथ में खाना खाया करते थे। पिता - पुत्री का ये प्रेम देखकर रामेश्वरी बहुत प्रस्सं रहती थी। एक बार खाने में नमक ज्यादा हो गया जिसके कारण रत्नलाल को गुस्सा आ गया। उसने थाली को पटक दिया सारा खाना फर्श पर फैला दिया। यह देख रामेश्वरी बहुत दुखी हुई। इतने में रत्नलाल उठकर खड़े हो गए और रामेश्वरी के बाल पकड़कर उसे पीटने लगे। रामेश्वरी जोर जोर से चिल्लाने लगी, मुझे माफ़ करदो । उसे कई चोटें भी आईं। रामेश्वरी के लाख कहने के बाद भी रत्नलाल नहीं रुके। जब रिया ने अपने पिता से रुकने के लिए कहा तो रत्नलाल ने कहा कि ढोल ,शूद्र, पशु और नारी सभी प्रताड़ना के अधिकारी"“ ये सुनकर की आंख से आंसू बहने लगे।


रिया ने अपने पिता से बोला पिताजी ये कहां लिखा है और इसके जवाब रत्नलाल ने कहा ये रामायण में लिखा है। इससे पहले कि रिया कुछ बोलती रत्नलाल ने उसे वहां से जाने को कहा। रिया रोते रोते चली गई। कुछ समय पश्चात वहां एक ऋषि आतें है उन्होंने रामेश्वरी के शरीर पर लगी चोटों की देखकर कहा - माते आपके शरीर पर ये चोटें कैसे लगी? रामेश्वरी ने बोला हे ऋषि आप यहां क्यों आएं हैं तो ऋषि ने कहा - जिस घर में स्त्री सुखी नहीं होती उस घर में कभी सुख - शांति नहीं आती। तभी उसका पाती रत्नलाल वहां आता है और उसने ऋषि से बोला - है मुनि आप तो जानते ही हैं “ ढोल ,शूद्र, पशु और नारी सभी प्रताड़ना के अधिकारी" इसने गलती की थी, ये उसकी शा थी। इतने में ऋषि बोले कि वत्स ये वचन ना राम के है, ना ही किसी विद्वान के ये शब्द तो अज्ञानी पुरुष के है। सभी ग्रंथो में ये लिखा है कि स्त्री पूजने योग्य होती हैं। ये सुनकर रत्नलाल दुखी होता है और रामेश्वरी से क्षमा मांगता है। उसके बाद मुनि भिक्षा लेकर चले जातें है। और उनका परिवार सकुशल अपना जीवन व्यतीत करता है।


इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती हैं “ अधूरा ज्ञान नुकसानदेह होता है ” साथ ही हमें स्त्रियों का आदर करना चाहिए।

Written by

Nikita Prajapati

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