यह वो समय कि बात है
जब मै अकेला था
मैं राहुल बाघेला , नीच जाती का हुं, मुझे छूना नही, में दूसरों के घर के काम करने के लिए बना हूं, मेरी मां को समाज में पानी पीने की इजाज़त नहीं है। कितना दर्द भरा वाक्य है यह।
यह सच्ची घटना ग्वालियर के डी. डी कॉलोनी की है। एक २० साल के बच्चे से ज़बरदस्ती मेरे हुए जानवर की लाश उठवाई जा रही है। क्यूंकि वो बच्चा एक नीच जाती का है। शरम आती है मुझे यह देखकर की हिंदू- मुस्लिम की लड़ाई ख़तम तक नहीं हुई और बरसो से हिन्दू धर्म में होकर भी जातियों कि लड़ाई लड़ते चले आ रहा है लोग।
एक परिवार गुजरात से आया था कमाई के लिए ग्वालियर, उस परिवार का बस इतना कसूर था कि उसने अपना घर किराए पर लिया लेकिन ठाकुरों की कॉलोनी मै। कुछ समय बाद एक बड़े जानवर की मौत हो गई जिसको उठवाने के लिए उसके पिता और लड़के को बुलाया क्यूंकि वो जात से भंगी थे। जब यह अत्याचार उन बाघेल परिवार को शरण देने वाले मकान मालिक ने आवाज़ उठाई तो उनका भी बहिष्कार कर दिया गया। जब उन मकान मालिक की बेटी तमिलनाडु से पड़कर वापस लोटी तब जाकर सबको इंसाफ मिला। उनकी बेटी का नाम मालिनी राजपूत है जो कि लॉ की छात्रा है, उस लड़की ने हर एक कोशिश कि लेकिन लोगो ने उसका भी बहिष्कार करना शुरू किया। लेकिन उस बच्ची ने सबको कानून का पाठ पढ़ाने के लिए कानून की मदद ली और human rights के दरवाजे खटखाए और हर व्यक्ति पे जिन्होंने बहिष्कार के सहयोगी थे उनको section 17 के तहत् गिरफ्तार करवाकर सबको
इंसाफ दिलाया।
दोस्तो, हम इंसान है, भगवान ने बनाया हमे, और हमारा कर्म ही हमारी पहचान है ना कि जाती और धर्म।
WRITTEN BY- TOMAR ARUSHI
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